एकोत्तरशती/व्यक्त प्रेम
(পৃ. १३-१६)
व्यक्त प्रेम
केन तबे केड़े निले लाज-आवरण!
हृदयेर द्वार हेने बाहिरे आनिले टेने,
शेषे कि पथेर माझे करिबे वर्जन॥
आपन अन्तरे आमि छिलाम आपनि,
संसारे शत काजे छिलाम सबार माझे,
सकले येमन छिल आमिओ तेमनि॥
तुलिते पूजार फुल येतेम यखन—
सेइ पथ छाया-करा, सेइ बेड़ा लता-भरा,
सेइ सरसीर तीरे करबीर बन—
सेइ कुहरित पिक शिरीषेर डाले,
प्रभाते सखीर मेला, कत हासि कत खेला,
के जानित की छिल ए प्राणेर आड़ाले॥
बसन्ते उठित फुटे बने बेलफुल,
केह बा परित माला, केह बा भरित डाला,
करित दक्षिण वायु अञ्चल आकुल॥
बरषाय घन घटा, बिजुलि खेलाय,
प्रान्तरेर प्रान्तदिशे मेघे बने येत मिशे,
जुँइगुलि विकशित बिकालबेलाय॥
वर्ष आसे वर्ष याय, गृहकाज करि—
सुख दुःख भाग लये प्रतिदिन याय बये,
गोपन स्वपन लये काटे विभावरी॥
लुकानो प्राणेर प्रेम पबित्र से कत!
आँधार हृदयतले मानिकेर मतो ज्वले,
आलोते देखाय कालो कलङ्केर मतो॥
भाङिया देखिले छि छि नारीर हृदय।
लाजे-भये-थरथर भालोबासा सकातर
तार लुकाबार ठाँइ काड़िले, निदय॥
आजिओ तो सेइ आसे बसन्त शरत्।
बाँका सेइ चाँपाशाखे सोना-फुल फुटे थाके,
सेइ तारा तोले एसे, सेइ छाया पथ॥
सबाइ येमन छिल, आछे अविकल;
सेइ तारा काँदे हासे, काज करे, भालोबासे,
करे पूजा, ज्वाले दीप, तुले आने जल॥
केह उँकि मारे नाइ ताहादेर प्राणे,
भाङिया देखेनि केह हृदय गोपनगेह,
आपन मरम तारा आपनि ना जाने॥
आमि आज छिन्न फुल राजपथे पड़ि,
पल्लवेर सुचिकन छायास्निग्ध आवरण
तेयागि धूलाय हाय याइ गड़ागड़ि॥
नितान्त व्यथार व्यथी भालोबासा दिये
सयतने चिरकाल रचि दिबे अन्तराल,
नग्न करेछिनु प्राण सेइ आशा निये॥
मुख फिरातेछ सखा, आज की बलिया!
भूल करे एसेछिले? भूले भालोबेसेछिले?
भूल भेङे गेछे ताइ येतेछ चलिया?
तुमि तो फिरिया याबे बइ काल,
आमार ये फिरबार पथ राख नाइ आर,
धूलिसात् करेछ ये प्राणेर आड़ाल॥
ए की निदारुण भूल, निखिलनिलये
एत शत प्राण फेले भूल करे केन एले
अभागिनी रमणीर गोपन हृदये॥
भेबे देखो, आनियाछ मोरे कोन्खाने—
शत लक्ष-आँखि-भरा कौतुक-कठिन धरा
चेये रबे अनावृत कलङ्केर पाने॥
भालोबासा ताओ यदि फिरे नेबे शेषे
केन लज्जा केड़े निले एकाकिनी छेड़े दिले
विशाल भवेर माझे विवसना वेशे॥
२४ मई १८८८ 'मानसी'
केन...निले—क्यों तब काढ़ लिया (हटा दिया); हेने—तोड़ कर, आघात कर; आनिले टेने—खींच लाए; करिबे—करोगे; वर्जन—त्याग।
आमि—मैं; छिलाम—थी; सबार साथे—सबके मध्य, सबके बीच; येमन—जैसा; छिल—था; आमिओ—मैं भी; तेमनि—उसी प्रकार, वैसा।
तुलिते—चुनने; येतेम—जाती; सेइ—उस; करबीर बन—कनेर का वन।
कुहरित—कूजित; कत—कितना; के—कौन; जानित—जानता; की—क्या; आड़ाले—अन्तराल में।
उठित फूटे—प्रस्फुटित हो उठता; केह—कोई; परित—पहनता; भरित—भरता; डाला—फूल की डलिया।
येत मिशे—मिल जाता; जुँइगुलि—जूही के फूल; बिकालबेलाय—तीसरे पहर।
आसे—आता है; लयेले कर; सुख...बये—सुख—दुःख का भाग ले कर (सुख से दुःख से) दिन बीत जाता है; गोपन...बिभावरी—गोपन स्वप्नों को ले कर रात कट जाती है।
लुकानो—छिपा हुआ; मतो—जैसा, समान; ज्वले—प्रज्वलित होना; आलोते—प्रकाश में; देखाय—दीख पड़ता है।
भालोबासा—प्रेम; तारउसका; लुकाबार ठाँइ—छिपने का स्थान।
आजिओ—आज भी; बाँका—वक्र, टेढ़ा; चाँपा—चम्पा; तारा...एसे—वे आ कर तोड़ती हैं।
सबाइ—सभी; अविकल—अविकृत, हू-ब-हू; काँदे—रोते हैं; ज्वाले—जलाते हैं; तुले आने—खींच लाते हैं।
उँकि मारे—झाँकता है; तारा—वे सब।
तेयागि—त्याग कर; गड़ागड़ि—भूलुण्ठित।
सयतने—यत्न पूर्वक; करेछिनु—किया था। निये—ले कर।
फिरातेछ—फिरा रहे हो; बलिया—बोल कर, कह कर; भूले...एसेछिले—भूल से आए थे; भूले भालोबेसेछिले—भूल से प्यार किया था; भूले...गेछे—भ्रान्ति दूर हो गई है; ताइ—इसीलिए; येतेछ चलिया—चले जा रहे हो।
फिरिबार—फिरने का, लौटने का; राख नाइ—नहीं रखा; आर—और।
फेले—छोड़ कर; एले—आए।
भेबे—सोच कर; आनियाछ—ले आए हो; मोरे—मुझे; कोन्खाने—कहाँ, किस स्थान पर; चेये रबे—देखती रहेगी; पाने—ओर।
भालोबासा...शेषे—अगर (अपने) प्यार को अन्त में लौटा लोगे; केन...निड़े—क्यों लज्जा को काढ़ लिया; एकाकिनी...वेशे—विवस्त्र (इस) विशाल संसार में अकेली क्यों छोड़ दिया।