एकोत्तरशती/निष्फल कामना

निष्फल कामना

रबि अस्त याय।
अरण्येते अन्धकार, आकाशेते आलो।
सन्ध्या नत-आँखि
धीरे आसे दिवार पश्चाते।
बहे कि ना बहे
बिदायविषादश्रान्त सन्ध्यार बातास।
दुटि हाते हात दिये क्षुधार्त नयने
चेये आछि दुटि आँखि-माझे॥


खंजितेछि, कोथा तुमि,
कोथा तुमि!

ये अमृत लुकानो तोमाय
से कोथाय!
अन्धकार सन्ध्यार आकाशे
विजन तारार माझे काँपिछे येमन
स्वर्गेर आलोकमय रहस्य असीम,
ओइ नयनेर
निबिड़ तिमिरतले, काँपिछे तेमनि
आत्मार रहस्यशिखा।
ताइ चेये आछि।
प्राण मन सब लये ताइ डुबितेछि
अतल आकाङ्क्षापारावारे।
तोमार आँखिर माझे,
हासिर आड़ाले,
बचनेर सुधास्रोते,
तोमार बदनब्यापी
करुण शान्तिर तले
तोमारे कोथाय पाबो—
ताइ ए क्रन्दन॥


बृथा ए क्रन्दन।
हाय रे दुराशा,
ए रहस्य, ए आनन्द तोर तरे नय।

याहा पास ताइ भालो—
हासिटुकु, कथाटुकु,
नयनेर दृष्टिटुकु, प्रेमेर आभास।
समग्र मानव तुझ पेते चास
ए की दुःसाहस!
की आछे वा तोर!
की पारिबि दिते!
आछे कि अनन्त प्रेम?
पारिबि मिटाते
जीवनेर अनन्त अभाव?
महाकाश-भरा
ए असीम जगत्-जनता,
ए निबिड़ आलो-अन्धकार,
कोटि छायापथ, मायापथ,
दुर्गम उदय-अस्ताचल,
एरि माझे पथ करि
पारिबि कि निये येते
चिर सहचरे
चिर रात्रि दिन
एका असहाय?
ये-जन आपनि भीत, कातर, दुर्बल,
म्लान, क्षुधातृषातुर, अन्ध, दिशाहारा,

आपन हृदयभारे पीड़ित जर्जर,
से काहारे पेते चाय चिरदिन-तरे!

क्षुधा मिटाबार खाद्य नहे ये मानव,
केह नहे तोमार आमार।
अति सयतने
अति संगोपने,
सुखे दुःखे, निशीथे दिवसे,
विपदे सम्पदे,
जीवने मरणे,
शत ऋतु-आवर्तने
शतदल उठितेछे फुटि—
सुतीक्ष्ण वासना-छुरि दिये
तुमि ताहा चाओ छिँड़े निते?
लओ तार मधुर सौरभ,
देखो तार सौंन्दर्यविकाश,
मधु तार करो तुमि पान,
भालोबासो, प्रेमे हओ बली—
चेयो ना ताहारे।
आकाङ्क्षार धन नहे आत्मा मानवेर॥

शान्त सन्ध्या, स्तब्ध कोलाहल।
निबाओ वासनावह्नि नयनेर नीरे।
चलो धीरे घरे फिरे याइ॥
२८ नवम्बर १८८७ ‘मानसी’


 आलो—आलोक, प्रकाश; आसे—आता है; दिवार पश्चाते—दिन के पीछे; बातास—हवा; हात—हाथ; दुटि—दो; चेये आछि—देख रहा हूँ।

 खुँजितेछि—खोज रहा हूँ; कोथा—कहाँ; तुमि—तुम; लुकानो—छिपा हुआ; तोमाय—तुझमें; से—वह; कोथाय—कहाँ; येमन—जैसे; ओइ—उस; तेमनि—तैसे; लये—ले कर; ताइ—इसलिए; आड़ाले—आड़ में; अन्तराल में; तोमारे—तुम्हें; पाबो—पाऊँगा; ताइ—इसलिये।

 ए—यह; तोर...नय—तुम्हारे लिये नहीं है;  याहा—जो; पास–पाओ; हासिटुकु—थोड़ी सी हँसी (टु का प्रयोग अत्यल्प परिमाण का बोध कराने के लिये किया जाता है।); तुइ...चास—तू पाना चाहता है; की...तोर—तुम्हारे पास क्या है; की...दिते—क्या दे सकोगे; आछे कि—क्या है; पारिबि मिटाते—मिटा सकेगा; जनता—भीड़; एरि...येते—इसीके बीच पथ बना कर क्या ले जा सकोगे; एका—अकेला, निःसंग; ये-जन—जो मनुष्य; आपनि—अपने ही; दिशाहारा—दिग्‌भ्रान्त;

 भारे—भार से, बोझा से; से...तरे—वह चिरदिन के लिये किसे पाना चाहता है।

 मिटाबार—मिटाने का; नहे—नहीं है; केह...आमार—कोई तुम्हारा हमारा नहीं है; उठितेछे फुटि—प्रस्फुटित हो उठता है; छुरि दिये—छुरी से, छुरी द्वारा; तुमि...निते—तुम उसे तोड़ लेना चाहते हो; लओ—लो; तार—उसका; भालोबासो—प्यार करो, प्रेम करो; हओ—होओ; चेयोना ताहारे—उसे देखो मत; नहे—नहीं है।

 निबाओ—बुझाओ।